अकेलापन

कुछ हमें भूल गए, कुछ को हमने भुला दिया,
परिणाम यह निकला कि हम अकेले हो गए।
अब रातें चुपचाप कटती हैं,
और दिन भी सूने से लगते हैं।
जिन महफिलों में रौनक थी कभी,
आज वहाँ बस सन्नाटा मिलता है।
ये तन्हाई अब साथी है हमारी,
और खामोशी पहचान बन गई है।
कभी सोचा न था ऐसा भी होगा,
कि अपनी दुनिया ही बेजान हो जाएगी।
शिकवा किससे करें, शिकायत क्या हो,
ये तो अपनी ही बुनी हुई दुनिया है।
रिश्तों के धागे जब टूट गए,
तो बिखरना लाजमी था।
उन राहों पर अब चलते नहीं हम,
जहाँ कभी थे काफिले हमारे।
बस यादों की धूल उड़ती है अब,
और दिल में गहरे निशान रह गए।
मगर ये भी सच है कि इंसान अकेला जी नहीं सकता,
ज़रूरी है कि वो सामाजिक बने, अपनों से जुड़कर रहे।
ये दिल जो सूना पड़ा है, उसे कोई आसरा चाहिए,
क्योंकि रिश्तों की गर्माहट से ही जीवन में रंग भरते हैं।

Comments