बढ़ती उम्र के पड़ाव पर
बढ़ती उम्र के पड़ाव पर कई बार हमें यह एहसास होने लगता है कि हम वक्त पीछे छोड़कर काफी आगे निकल आए हैं खासकर तब जब हम अपने सामने कुछ नया कर पाते हैं स्कूल से कॉलेज की दहलीज पर नया सफर हमें एहसास दिलाता है कि हम बड़े हो गए हैं पढ़ाई कर कठिन परिश्रम और फिर नौकरी पाने की, या अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद हमें यह एहसास दिलाती है कि हम बड़े हो गए हैं वक्त गुजरता है और हमारी शादी हो जाती है फिर हमें महसूस होता है कि हम बड़े हो गए हैं फिर पापा मम्मी बनना और बच्चों की जिम्मेदारी, ऑफिस की जिम्मेदारी है परिवार और रिश्तो की जिम्मेदारी हमें यह एहसास दिलाती है कि हम बड़े हो गए हैं वक्त बीतता रहता है और परिस्थितियां बदलती रहती हैं कब दाढ़ी मूछ बाल सफेद हो गए कल जिन्हें उंगली पकड़कर चलना सिखाया था वह हमें आज सिखाने लगे हैं इन्हीं उम्र की दहलीज पर ऊपर हमें लगने लगता है कि शायद हम बड़े हो गए हैं इसी के बीच शायद हमने कहीं जीना ही छोड़ दिया वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला पापा से दादू कब बन गया पता ही नहीं चला कब रिटायरमेंट हो गया पता ही नहीं चला अब तो वक्त ही वक्त है पर जिम्मेदारियां खत्म नहीं होती।
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