मन
उड़ती पतंग सा भागता है कभी कटी पतंग सा कभी बहते झरने से चंचल हो जाता है, तितली सा उड़ता जाता है कभी बादलों सा, कभी शांत रातों से निशब्द, चुपचाप, कैसा है यह मन। कभी सतरंगी इंद्रधनुष सारे आसमान मेंं बिखर जाता है। हमारा मन ब्रह्मांड की तरह है जहां दुनिया भर की सारी चीजें समा सकती हैं इसलिए मन को शांत रहना, व्यवस्थित रहना बहुत जरूरी है विचलित मन कोई निर्णय नहीं ले सकता ,सुकून और शांति से नहीं रह सकता इसलिए नियमित ध्यान की आवश्यकता होती है जिससे हम अपने मन को नियंत्रित रख सकें ।
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