"जिन ढूंढ़्या तिन पायें, गहरे पानी पैठ
"जिन ढूंढ़्या तिन पायें, गहरे पानी पैठ" "जिन ढूंढ़्या तिन पायें, गहरे पानी पैठ" — संत कबीर का यह दोहा सिर्फ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि जीवन की सच्चाई को उजागर करने वाला गहन संदेश है। इसका अर्थ है कि जिसने ईश्वर या सत्य को पाने की सच्ची चाह की, उसने अपने भीतर की गहराइयों में उतर कर उसे पा भी लिया। आज का मनुष्य अक्सर सतही जीवन में उलझा हुआ है — दौड़भाग, लोभ, मोह, प्रतिस्पर्धा और दिखावे की दुनिया में। लेकिन आत्मा की शांति, ईश्वर की प्राप्ति या जीवन का वास्तविक उद्देश्य कभी सतह पर नहीं मिलता। उसके लिए भीतर उतरना पड़ता है — अपने अहंकार को त्यागकर, अपनी इच्छाओं को संयमित कर के, अपने भीतर झांक कर। जैसे समुद्र की गहराई में ही मोती मिलते हैं, वैसे ही आध्यात्मिक ज्ञान , शांति , और ईश्वर का अनुभव केवल उन्हीं को मिलता है जो अपने भीतर की यात्रा करते हैं। ये लोग बाहरी दुनिया की चकाचौंध से दूर, मौन और साधना में लीन रहते हैं। वे कठिनाइयों से डरते नहीं, बल्कि उनका सामना कर गहराइयों तक पहुंचते हैं। दूसरी ओर, कबीर जी अगली पंक्ति में कहते हैं — "मैं बौरी डूबन डरी,...