शरीर धर्म का साधन है।

*।।शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।।* 
                                      -उपनिषद
 
अर्थ : शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। शरीर अपने आप में ब्रम्हांड है यह ज्ञान और चेतना का मार्ग है, यह आपको सही और गलत में निर्णय लेने में मदद करता है। यह मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

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