खुशियों का मेला
कितना अच्छा होता कि हम खुशियों के मेले में घूमते फिरते रहते, इतराते रहते और वक्त भूल जाते न दिन की फिक्र होती ना रात का की चिंता होती, दोस्तों के साथ खुशियों की तरंगों में चमकती रंगो की रोशनी के बीच इतराते नन्हे नन्हे कदमों से फुदक फुदक रंग बिरंगी फुलझड़ियां, झूले, मिठाईयां, नए नए कपड़े कुछ खट्टा, कुछ मीठा, कुछ चटपटा खाने के सामान, घर में उत्सव का माहौल हो, महकती खुशबू दार नए-नए कपड़ों में सजे धजे लोग त्योहारों जैसा सजा घर हो, शादी बारात जैसा माहौल हो जहां हर गम फीके पड़ जाए और खुशियों का माहौल हो।
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